Tuesday, June 16, 2009

तो गोलू के बाथरूम जाने से हार गया भारत

भारतीय टीम ट्वंटी 20 विश्व कप से बाहर हुई तो इसके सबसे बड़े कारणों में धोनी की घटिया बल्लेबाजी, फील्डरों के खराब प्रदर्शन के साथ-साथ गोलू का भारतीय पारी के दौरान बाथरूम जाना भी रहा। क्या कहा आपने, ये गोलू कौन है ----, गोलू को नहीं जानते ----। गोलू 12 साल का वह बालक है जो भारतीय पारी के दौरान अगर बाथरूम गया तो विकेट गिरने की संभावना कफी बढ़ जाती है। गोलू खुद तो ऐसा नहीं मानता लेकिन उसके भैया और तमाम दोस्त यही बात कहते हैं।

आप और हम भी शायद उस गोलू की तरह या उसके भैया और दोस्तों के जैसे हैं जो भारत के मैचों के दौरान तमाम किस्म के टोटके करते हैं। कभी-कभी तो इसक खुमार मैच खत्म होने के दो-तीन दिन बाद तक भी रहता है। भारत मैच हारा और अगले दिन परचून की दुकान जाते वक्त पड़ोसी मिल जाता है और कहता क्यों भाई साहब हरवा ही दिया आपने इंडिया को। इस पर जवाब होता है अरे भाई साबह मैंने नहीं गोलू (भोलू, संदीप, रमेश, सुरेश भी हो सकते हैं जिम्मेदार) ने हरवा दिया। युवराज बैटिंग कर रहा था और वह बाथरूम जाने की जिद करने लगा। आप तो जानते ही हैं वह बाथरूम जाता है तो क्या होता है। वह लौटा नहीं कि युवी स्टंप आउठ होकर पैवेलियन लौट चुका था। वह क्रीज पर थोड़ी देर और टिक जाता तो मैच का नक्शा बदल जाता।

आश्चर्य की बात है कि इस तरह के टोटकों में यकीन रखने वाले कोई अनपढ़ या गंवार नहीं होते। वह पत्रकार, बैंकर, आईएएस अफसर से लेकर मल्टीनेशनल कम्पनियों का कोई कर्मचारी भी हो सकता है। जिस पर रौब जमा उससे तो टोटके करवा लिए और नहीं जमा तो मन में सैकड़ों गालियां दे डाली। साला जाता भी नहीं---- पूरा मैच देखेगा और इंडिया की वाट लगा के ही दम लेगा। हालांकि मजा तब आता है जब ऐसे लोग खुद किसी दूसरे के टोटके का पात्र बन जाते हैं। तब इन्हें बड़ा अजीब लगता है। सोचते हैं कि मैं तो मैच जिताऊ प्लेयर हूं कोई बाहरी (आस्ट्रेलियाई ग्रेग चैपल की तरह) मुझे क्या नसीहत देगा। ऐसा लगता है कि धोनी, युवराज, इरफान जहीर की मेहनत तो बस यूं ही है मैच तो यही जिताते हैं तीन घंटे एक ही कुर्सी पर बैठ कर, पेशाब दबा कर, पानी न पीकर या बहुत पानी पी कर। ताज्जुब है।

ऐसा नहीं ये टोटके सिर्फ आम जन ही करते हैं। ये क्रिकेटर भी कम नहीं भाई साहब। कोई बाएं पैर में पहले पैड बांधता है तो कोई लाल रुमाल लेकर क्रीज पर जाता है, कोई ग्लव्स में स्क्वैश की गेंद रखता है तो कोई मैच के दौरान टी-शर्ट बदलता है। कितनी जायज है ये टोटकेबाजी या किसी के ऊपर शुभ-अशुभ का ठप्पा लगा देना।

क्रिकेट मैच तो हल्की-फुल्की बात है लेकिन ये आदत जिन्दगी के गम्भीर क्षणों में भी पीछा नहीं छोड़ती। वो ऑफिस में आया इसलिए मेरी नौकरी गई। सवेरे उसका चेहरा देख लिया तो दिन खराब हो गया। फलां साला है ही मनहूस--- आदि-आदि। ये कोई हंसी-मजाक नहीं। क्या ऐसी सोच को क्रिकेट में जायज और गम्भीर मसलों पर नाजायज है। गलत तो गलत ही है चाहे किसी भी अवसर पर क्यों न हो। आपका क्या कहना है?

6 comments:

समयचक्र said...
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समयचक्र said...

आज पता चला अपने गोलू की हरकत का, कि इंडिया काय हार गई . शीर्षक देखकर मै तो समझा था कि ब्लागजगत के गोलू पांडे के बारे में आपने भी लिख दिया है .

Sundip Kumar Singh said...

बहुत खूब...सच कहा आपने ये हमारी लाइफ में अक्सर होता है. जब भी हम मैच देख रहे होते हैं तब ऐसे ही न जाने कितने काम करते हैं. यहाँ तक कि अपने हाथ को रखने की मुद्रा भी हमें थामनी पड़ती है कि कहीं इसे बदलते ही विकेट न गिर जाये...लेकिन क्या होने वाला है हुआ वही जो होना था. फिर भी हम हार मानने वाले थोड़े ही हैं फिर देखेंगे मैच. चलिए फिर अपनी धडकनों को थामकर रखिये अगले मैच में काम आएगा.

ravishndtv said...

मज़ा आ गया।

विवेक रस्तोगी said...

सही है ऐसे टोटके तो हमने भी बहुत देखे हैं, खुद की संतुष्टि के लिये होता है यह सब.

अविनाश वाचस्पति said...

आपके खेल पत्रकार
होने पर हो रहा है शक


लफ्जों में लटकों को
दिया है लटका।

लग रहा है सट्टा
खेल रहे हैं मटका।

नब्‍ज कसकर पकड़ी है
शब्‍दों में गर इसे
दिया छोड़
तो धोनी लेगा
सिर फोड़।

यह है नया टोटका
आजमाना मत
यह है मेरा मत
और आपका मत ?

ब्लोग्वानी

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